जानिए कौन हैं हनुमान प्रसाद पोद्दार,जिनके जयंती महोत्सव में शामिल हुए सीएम योगी | Hanuman Prasad Poddar (1892–1971) was an Indian independence activist, littérateur, magazine editor and philanthropist. He was also one of the trustee of gita press
Gorakhpur
oi-Punitkumar Srivastava
गोरखपुर,22सितंबर:आज भाई जी के उपनाम से प्रसिद्ध संत नित्यलीलालीन हनुमान प्रसाद पोद्दार की 130वी जयंती है।इस अवसर पर गीता वाटिका में भव्य महोत्सव का आयोजन किया जाता है।गुरुवार को सीएम योगी ने इस जयंती कार्यक्रम में हिस्सा लिया एंव भाईजी के जीवन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।भाई जी का जीवन जन कल्याण के लिए समर्पित था।उन्होंने एक जीवन में कई जिंदगियां जी।वह एक क्रांतिकारी,संपादक,समाजसेवी,सफल कथावाचक थे।आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

जन्म राजस्थान में हुआ
हनुमान प्रसाद पोद्दार का जन्म शनिवार, 17 दिसंबर, 1890 को राजस्थान के रतनगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम भीमराज तथा माता का नाम रिखीबाई था। बाल्यावस्था में ही बालक हनुमान की माता रिखीबाई कभी न पूर्ण होने वाली कमी देकर चली गईं। उसके पश्चात दादी मां रामकौर देवी ने ही बालक का पालन-पोषण किया। दादी रामकौर देवी के सान्निध्य में बालक को भारतीय परंपरा और संस्कृति विरासत में मिली थीं, जिसकी उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से आजीवन सेवा की।
संपादक की भूमिका में
कल्याण’ मासिक पत्र के संपादक के रूप में पोद्दार जी का पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष स्थान है। ‘कल्याण’ के संपादक के रूप में हनुमान प्रसाद जी को विश्व भर के आध्यात्म प्रेमियों के बीच लोकप्रियता मिली। ‘कल्याण’ के संपादन के अलावा उनको गीता-प्रेस में दिए गए योगदान के लिए जाना जाता है। गीता-प्रेस के आजीवन ट्रस्टी रहे पोददार जी की गीता-प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयनका से प्रगाढ़ मित्रता थी।
जयदयाल गोयनका को गीता में गहरी रूचि थी, वे प्रतिदिन गीता का अध्ययन किया करते थे और विभिन्न स्थानों में घूम-घूम कर गीता का प्रचार भी किया करते थे। गीता को आमजन तक पहुंचाने के लिए शुद्ध पाठवाली पुस्तक की आवश्यकता थी जो उस समय उपलब्ध नहीं थी।गोयनका जी ने गीता की व्याख्या कर कलकत्ता के वणिक प्रेस से पांच हजार प्रतियां छपवायीं। जिसमें मुद्रण से संबंधित विभिन्न गलतियां थीं, अतः उन्होंने धार्मिक-आध्यात्मिक प्रकाशन हेतु सन 1923 में गीता-प्रेस की स्थापना की। गीता-प्रेस की स्थापना यद्यपि जयदयाल गोयनका ने की, किंतु संपादन की जिम्मेदारी हनुमान प्रसाद पोद्दार के पास ही थी। वे गीता-प्रेस के ट्रस्टी भी थे।
उन्होंने निबंधों एवं लेखों के अलावा विभिन्न टीका साहित्य का भी सर्जन किया। हनुमान प्रसाद पोद्दार ने रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली की विशद टीका प्रस्तुत की।सन 1927 में गीता-प्रेस से ही ‘कल्याण’ का भी प्रकाशन होने लगा। ‘कल्याण’ के प्रकाशन की शुरूआत का भी बड़ा रोचक प्रसंग है। सन 1926 में मारवाड़ी अग्रवाल महासभा का अधिवेशन दिल्ली में होना था। उस अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष आत्माराम खेमका थे। वे शास्त्रज्ञ थे, किंतु हिंदी में व्याख्यान नहीं लिख सकते थे।
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क्रांतिकारी के रुप में
21 जुलाई 1916 को कलकत्ता के मारवाड़ी समुदाय में अफवाहों का बाजार गरम था। उस दिन तड़के पुलिस ने घनश्याम दास बिड़ला के घर पर छापा मारा। कलकत्ता तब भारत में बरतानवी हुकूमत की राजधानी होता था। और, बिड़ला केवल 22 वर्ष के थे। वे तो नहीं मिले, पर बड़ा बाजार और आसपास के इलाकों में बसे मारवाड़ियों के कुछ और घरों पर छापे डालकर पुलिस ने 3 युवकों को गिरफ्तार किया और उनके पास से 31 माउजर पिस्तौलें बरामद की।इनमें से एक थे, 23-वर्षीय हनुमान प्रसाद पोद्दार, जो बाद में गीता प्रेस और कल्याण से जुड़े।
English summary
Hanuman Prasad Poddar (1892–1971) was an Indian independence activist, littérateur, magazine editor and philanthropist. He was also one of the trustee of gita press
Story first published: Thursday, September 22, 2022, 22:44 [IST]